छठ पूजा, जिसे लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है, कार्तिक महीने में मनाया जाता है। यह पवित्र पर्व सतयुग और द्वापर युग से जुड़ा हुआ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सीता और द्रौपदी ने भी इस व्रत को रखकर सूर्य देव की उपासना की थी। इस पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की आराधना के माध्यम से सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना की जाती है।
छठ पूजा 2024: लोक आस्था का महापर्व और इसका रोचक इतिहास
छठ पूजा वह महत्वपूर्ण तीज-त्योहार है जो हिंदू धर्म के पर्वों में से एक है। इस पर्व को बहुत ज्यादा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित अन्य क्षेत्रों में आते हैं, किन्तु इस समय देश के लगभग प्रमुख क्षेत्रों और विदेशों में बसे भारतीय लोग इसे मनाते हैं। छठ पूजा चाहे हम कहें सूर्य भगवान या उसी की शक्ति को साकार करती छठी मैया, सर्वीयता में समर्पित, तपस्वी, प्राकृतिक तत्वों के अनुरूप है।
कब है छठ पूजा 2024
चार दिन के इस महापर्व को कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाएगा। आइए जानते हैं कब कौन सी सेवाएँ होगी। छठ पूजा की तिथियां
नहाय खाय - मंगलवार, 5 नवंबर 2024
खरना - बुधवार, 6 नवंबर 2024
संध्या अर्घ्य - गुरुवार, 7 नवंबर 2024
- उषा अर्घ्य: शुक्रवार, 8 नवंबर 2024
Chhath Puja 2024 Significance
Chhath Puja is the principal festival of Hindu religion, and it is also called Mahaparv of Lok Aastha. This festival is a symbol of worshipping nature, the sun god, and chhathi maiya by motive of maintaining good health and wealth as well as the prosperity of one's family.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत सतयुग और द्वापर युग से होती है। रामायण के अनुसार, माता सीता और भगवान श्रीराम ने भी छठ का व्रत रखा था। वहीं, महाभारत काल में कर्ण और द्रौपदी ने भी सूर्य उपासना की थी। इस व्रत को करने वाले भक्त सूर्य देवता को अर्घ्य देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
छठ पूजा का पौराणिक इतिहास
रामायण काल से जुड़ा छठ पूजा का इतिहास
रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम, जिन्होंने 14 वर्षों का वनवास और रावण वध करने के बाद अयोध्या को लौटे, उस पर रावण वध का पाप था। इस पाप से मुक्ति के लिए ऋषि-मुनियों ने उन्हें राजसूय यज्ञ कराने का निर्देश दिया। यज्ञ के लिए भगवान राम, माता सीता के भेजे, मुग्दल ऋषि ने उन्हें अपने आश्रम में बुलाया। वह कहते हैं, कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को माता सीता ने सूर्य देव की उपासना की और व्रत रखा। इस प्रकार, राम-सीता द्वारा की गई यह पूजा इसलिए रामायण में छठ की शुरुआत मानी जाती है।
छठ पूजा का महाभारत काल से जुड़ा इतिहास
महाभारत में भी छठ पूजा का महत्व करने वाला है। जब पांडव अपना राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव और सूर्य देव की कृपा से पांडवों को खोया हुआ राज्य वापस मिल सका। इसके कारण महाभारत काल में भी छठ पूजा का विशेष महत्व था।
कर्ण और सूर्य उपासना
महाभारत की एक अन्य कथा के अनुसार, कर्ण सूर्य देव का परम भक्त था। वह प्रतिदिन सूर्योदय के समय कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देता था। माना जाता है कि कर्ण की तपस्या और सूर्य उपासना से ही छठ व्रत की परंपरा की शुरुआत हुई। सूर्य देव की कृपा से कर्ण महान योद्धा बना, और उसका जीवन प्रेरणादायक बन गया।
निष्कर्ष
छठ पूजा का इतिहास रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों से जुड़ा हुआ है, जो इसे और भी पवित्र और महत्वपूर्ण बनाता है। इस पर्व में प्रकृति, सूर्य, वायु, जल आदि की आराधना की जाती है, जो मानव जीवन के लिए आवश्यक तत्व हैं। छठ पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह अनुशासन, तपस्या और आस्था की अद्भुत मिसाल भी है।